नज़रों से नज़रें मिंली
दो आँखें तब चार हुई
ऐसे हसीं लम्हों में
प्यार की बरसात हुई
सब हदों को पार कर
सब रस्मों को तोड़ कर
दो पंछी इस खुले गगन में
बंधे धरा पर एक डोर में
दादा दादी खिले उठे खुशी से
जब इस घर में किलकार उठी
घर प्रकाशमय हो उठा
जब कुलदीपक का अभिनन्दन हुआ
करे प्रभु से यही कामना
सदा रहे खुशियों का दामन
साथ न छूटे इस दामन का
न बुरी नज़र की दस्तक हो