Monday, June 23, 2008

KHWAB

नज़रों से नज़रें मिंली

दो आँखें तब चार हुई

ऐसे हसीं लम्हों में

प्यार की बरसात हुई

सब हदों को पार कर

सब रस्मों को तोड़ कर

दो पंछी इस खुले गगन में

बंधे धरा पर एक डोर में

दादा दादी खिले उठे खुशी से

जब इस घर में किलकार उठी

घर प्रकाशमय हो उठा

जब कुलदीपक का अभिनन्दन हुआ

करे प्रभु से यही कामना

सदा रहे खुशियों का दामन

साथ न छूटे इस दामन का

न बुरी नज़र की दस्तक हो