Sunday, September 14, 2008

स्वतंत्रता

स्वतंत्रता क्या है ...

किसी साम्राज्य से मुक्ति

या जंजीरों से छुटकारा

स्वशाशन या लोकतंत्र की बहाली

या विचारों और धर्म की स्वतंत्रता

या इसके मायने कुछ और ही हैं

स्वतंत्रता....

भ्रस्टाचार का अंत

अशिक्षा उन्मूलन

बेकारी और बेरोज़गारी से मुक्ति

आतंकवाद का सफाया

अमन और चैन

एक आदर्श साम्राज्य की स्थापना

यही स्वाधीनता है

यही स्वतंत्रता है....

वृक्ष

वृक्ष की जड़ें इतनी तो मजबूत होती है


की अपनी टहनियों को संभाल सके


क्या हक है उसे


उस टहनी को अलग करने का


जो फल -फूल न दे सके



क्या यही अपनत्व है


या अपनी ताकत


क्या नहीं...


कुछ पल इन्हें भी पोषित करें


अपने साथ लेकर


पुनः उसकी रगों में जोश भर सके


क्या कल ये वापस


पुष्पित पल्लवित नहीं हो सकती


क्या इस खुशी से बढाकर कुछ और होगी


ये अपनापन नहीं तो और क्या है


नहीं तो एक दिन


इसी विचारधारा के साथ


ये वृक्ष विरान हो जाएगा


ये स्वयं अपना वजूद खो बैठेगा


प्यार

क्या आप किसी से प्यार करते हैं

क्या आप इसका जवाब जानना चाहते हैं

यदि हाँ तो अपने दिल से पूछो

इसकी धड़कने क्या बयाँ करती है

जवाब तो हाँ ही होगा

क्योंकि दिल की हर धड़कन में प्यार बसा है

जिंदगी में हर किसी को

किसी ना किसी से सच्चा प्यार ज़रूर होता है

और हाँ मैं भी इससे बच न सका हूँ

मैंने भी सच्चा प्यार किया है

अपने लक्ष्य से , अपने आप से , अपनी माँ से और अपने दोस्तों से ....

अनाम दोस्ती

आंखों में समाया हुआ

धुंधला सा एक चहरा

चहरे पे एक निश्चल मुस्कान

और हिलते हुए हाथों से प्यार भरी विदाई

जिंदगी के वो हसीं लम्हें

और असमंजस की स्थिति

चहरे पे कुछ खो जाने का सा गम

और खामोशी का ये समाँ

शायद एक अनाम दोस्ती की शुरुआत

जो कभी ख़त्म न हो

और दिल की एक दुआ

तू जहाँ भी रहे

खुशियों का दमन तेरे साथ रहे !

हैप्पी न्यू इयर

सांज का ये मंज़र

मस्ती का नज़ारा

मदहोशी का नशा

रात की ये क़वायद

सनसनाती सी ये हवाएं

फिजाओं में बिखरी चाँदनी

घुमाता हुआ कालचक्र

धड़कते हुए दिलों की दास्ताँ

बेज़ुबाँ ये अधर

और चहरे पे ये चंचल मुस्कान

कुछ यही बयाँ कर जाती है

की नए साल का हरेक पल

आपकी ज़िन्दगी के

वो हसीं पल बन जाए

जो आपकी आंखों में बस जाए

सदा के लिए...

अस्तित्व !!!

जिंदगी बह रही है


झरने की तरह


टकराहट भी है इसमें


और मधुर सा संगीत भी समाया है इसमें


टकराहट और संगीत का संगम


लेता है नदी का रूप


बहता है नीर अविरल


गुजरता है कई पथरीले मार्गों से


समाता है अपने आप मे कई धाराएं


और अंत में मिलती है अनंत जल में


शांत सी हो अपने अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा देती है


क्या मेरा भी कोई वजूद था


क्या मैं भी कोई जल प्रवाह थी


जवाब हाँ हो या ना


दोस्तों इसका फैसला तो आपके हाथों में है


समय बह रहा है झरने की तरह


फिर भी कुछ समय है अपने पक्ष में


जो इंतज़ार कर रहा है


किसी सोये हुए इंसान के जागने का !