की अपनी टहनियों को संभाल सके
क्या हक है उसे
उस टहनी को अलग करने का
जो फल -फूल न दे सके
या अपनी ताकत
क्या नहीं...
कुछ पल इन्हें भी पोषित करें
अपने साथ लेकर
पुनः उसकी रगों में जोश भर सके
क्या कल ये वापस
पुष्पित पल्लवित नहीं हो सकती
क्या इस खुशी से बढाकर कुछ और होगी
ये अपनापन नहीं तो और क्या है
नहीं तो एक दिन
इसी विचारधारा के साथ
ये वृक्ष विरान हो जाएगा
ये स्वयं अपना वजूद खो बैठेगा
1 comment:
आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है आप बहुत पैना लिखते हैं हमारे ब्लॉग पर भी पधारें
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