Sunday, September 14, 2008

वृक्ष

वृक्ष की जड़ें इतनी तो मजबूत होती है


की अपनी टहनियों को संभाल सके


क्या हक है उसे


उस टहनी को अलग करने का


जो फल -फूल न दे सके



क्या यही अपनत्व है


या अपनी ताकत


क्या नहीं...


कुछ पल इन्हें भी पोषित करें


अपने साथ लेकर


पुनः उसकी रगों में जोश भर सके


क्या कल ये वापस


पुष्पित पल्लवित नहीं हो सकती


क्या इस खुशी से बढाकर कुछ और होगी


ये अपनापन नहीं तो और क्या है


नहीं तो एक दिन


इसी विचारधारा के साथ


ये वृक्ष विरान हो जाएगा


ये स्वयं अपना वजूद खो बैठेगा


1 comment:

प्रदीप मानोरिया said...

आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है आप बहुत पैना लिखते हैं हमारे ब्लॉग पर भी पधारें