जिंदगी बह रही है
झरने की तरह
टकराहट भी है इसमें
और मधुर सा संगीत भी समाया है इसमें
टकराहट और संगीत का संगम
लेता है नदी का रूप
बहता है नीर अविरल
गुजरता है कई पथरीले मार्गों से
समाता है अपने आप मे कई धाराएं
और अंत में मिलती है अनंत जल में
शांत सी हो अपने अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा देती है
क्या मेरा भी कोई वजूद था
क्या मैं भी कोई जल प्रवाह थी
जवाब हाँ हो या ना
दोस्तों इसका फैसला तो आपके हाथों में है
समय बह रहा है झरने की तरह
फिर भी कुछ समय है अपने पक्ष में
जो इंतज़ार कर रहा है
किसी सोये हुए इंसान के जागने का !
Sunday, September 14, 2008
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