जब मैं अपनी पलकें बंद करता हूँ
तो मेरे खवाब मेरे सामने रहते हैं
और जब मैं अपनी पलकें खोलता हूँ
तो हकीकत नज़र आती है
फासला है ख्वाब और हकीकत में
तो सिर्फ इच्छाशक्ति जितना
ये इच्छाशक्ति मेरे सपनों को
अपना बना रही है
मेरा सपना है गुनगुनाने का
और सुरों में समाने का
लेकिन ये सुर किन्ही क़दमों
के थिरकने का इंतजार कर रहे हैं
इन सुरों को तलाश है ताल की
जो सुरताल बनके झूम उठे।
Sunday, February 21, 2010
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